आत्मनिर्भर भारत ही एकमात्र विकल्प
[राजनाथ सिंह]। मनुष्य के बारे में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का कहना था कि मनुष्य तन, मन, बुद्धि और आत्मा, इन चार चीजों से मिलकर बना है। कोई भी राजनीतिक पार्टी जो व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र का समग्र विकास करना चाहती है, उसे इन चारों की एक साथ चिंता करनी चाहिए, ताकि तन, मन, बुद्धि और आत्मा की भी आवश्यकताएं पूरी हो सकें।जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया तो उसका आधार हमारे मार्गदर्शक दीनदयाल जी का ‘एकात्म मानववाद’ ही था। दीनदयाल जी ने जो छह लक्ष्य दिए थे, वे सशक्त और स्वाभिमानी भारत के निर्माण के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत के संकल्प की पूर्ति के लिए भी जरूरी हैं। उनका कहना था कि लंबे प्रयासों के बाद मिली राजनीतिक स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने की व्यवस्था हमें करनी चाहिए।
अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का कल्याण
मुझे यह कहते हुए संतोष होता है कि 1975 से 1977 तक का कालखंड यदि छोड़ दिया जाए तो भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता को कभी आंच नही पहुंची। दूसरी बात दीनदयाल जी ने कही थी कि हमारी जनतंत्रीय प्रणाली जिससे संकट में पड़ जाए, वैसा आर्थिक नियोजन न हो। यह एक ऐसा विषय है, जो आत्मनिर्भर भारत के संकल्प से बहुत करीबी रिश्ता रखता है। दीनदयाल जी के आर्थिक मॉडल के केंद्र में मानव कल्याण और विशेष रूप से समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का कल्याण था।
सम्मान की जिंदगी जीने का मिले मौका
आजाद भारत में इस दिशा में ईमानदारी से प्रयास लंबे समय तक किए ही नहीं गए। इसकी शुरुआत अटल जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुई। उन्होंने अन्न भंडारों का मुंह खोला और देश के गरीबों को अंत्योदय योजना के अंतर्गत सस्ती दरों पर अनाज उपलब्ध कराया। सामान्य भारतीय को भी सम्मान की जिंदगी जीने का मौका मिले, इसके लिए ही मोदी जी ने जनधन, उज्ज्वला जैसी अनेक योजनाएं शुरू की हैं। दो साल पहले गरीबों की स्वास्थ्य रक्षा के लिए आयुष्मान भारत योजना के तहत देश के दस करोड़ गरीब परिवारों को पांच लाख रुपये सालाना की मुफ्त इलाज की सुविधा दी गई है। अब हमारे प्रधानमंत्री ने संकल्प लिया है कि 2022 तक देश के हर गरीब के सिर पर एक छत होगी।
किसानों को उनकी उपज के बेहतर दाम देने में सहायक होंगे ये तीन कानून
जब भी हम दीनदयाल जी की बात करते हैं तो लोग सबसे पहले जिस कहावत को याद करते हैं वह है-हर खेत को पानी, हर हाथ को काम। निहित स्वार्थों के चलते इस देश के किसानों को कभी वह सुविधा दी ही नहीं गई कि वह अपनी मेहनत का पूरा फल प्राप्त कर सके। अब जाकर तीन ऐसे कानून बनाए गए हैं, जो किसानों को उनकी उपज के बेहतर दाम देने में सहायक होंगे।इन तीनों कृषि कानूनों के लागू हो जाने के बाद देश का हर किसान पूरे देश में कहीं भी, जहां उसे बेहतर कीमत मिले, अपनी फसल बेचने के लिए आजाद है। इस ऐतिहासिक कृषि सुधार से उन लोगों के पैरों तले जमीन खिसक गई है, जो किसानों के नाम पर अपने निहित स्वार्थ साधते थे। इसलिए जानबूझकर एक गलतफहमी पैदा की जा रही है कि हमारी सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की व्यवस्था खत्म करना चाहती है, जबकि सच्चाई इसके ठीक उलट है। इसे खत्म करने का इरादा न कभी था, न है और न आगे कभी होगा। यहां तक कि मंडी व्यवस्था भी कायम रहने वाली है। किसानों के हित और कल्याण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता तो दीनदयाल जी के जमाने से ही है।दीनदयाल जी का तीसरा विचार था कि हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की हमें रक्षा करनी चाहिए। जिस तरह के उदात्त सांस्कृतिक मूल्य हमारे देश में सदियों से रहे हैं, वे किसी और देश में नही मिलते हैं। वसुधैव कुटुंबकम का संदेश भी सारे विश्व को अगर कहीं से गया तो हमारे भारत से गया।
भारत में मैन्यूफैक्चरिंग का बढ़ावा देने का संकल्प ले चुके हैं पीएम मोदी
जो चौथा राष्ट्रीय लक्ष्य दीनदयाल जी ने दिया था, वह था कि हमें सैनिक दृष्टि से आत्मरक्षा में समर्थ होना चाहिए। सामरिक नीति और र्आिथक नीति का सामंजस्य ही आत्मनिर्भर भारत के संकल्प की पूर्ति कर सकता है। दीनदयाल जी के अनुसार पांचवां लक्ष्य है आर्थिक स्वावलंबन का, जिसके भीतर से आत्मनिर्भर भारत की प्रतिध्वनि निकलती है। हमारे प्रधानमंत्री ने 2014 में ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वह भारत में मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने का संकल्प ले चुके हैं। मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत देश में मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने वाले कई निर्णय लिए गए। इसके बावजूद मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की भारत की जीडीपी में हिस्सेदारी 15 फीसद से ऊपर नहीं बढ़ सकी। अब जब बदली हुई परिस्थितियों में आत्मनिर्भर भारत का संकल्प लिया गया है तो सभी चुनौतियों की पड़ताल की जा रही है।
एक साल में 52,000 करोड़ रुपये के विनिर्माण के अवसर हुए प्राप्त
कई बार लोग पूछते हैं कि आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत आप ऐसा क्या करेंगे, जो मेक इन इंडिया में नहीं हो रहा था। रक्षा मंत्री के नाते मैं रक्षा क्षेत्र में लिए गए सिर्फ दो निर्णयों की चर्चा यहां पर करना चाहूंगा। पिछले दिनों मैंने 101 रक्षा उपकरणों की एक निगेटिव सूची जारी की, जिसके माध्यम से यह नीतिगत निर्णय लिया गया कि ये सारे उपकरण अब आयात नहीं होंगे, बल्कि इनका निर्माण यहां मौजूद कंपनियां ही करेंगी। इस एक निर्णय से एक साल में 52,000 करोड़ रुपये के विनिर्माण अवसर पैदा हो गए। मैं मानता हूं कि जब हम लोकल के लिए वोकल होंगे तो हमें भारत में आसानी से बनने वाली चीजें तो मिलेंगी ही, साथ ही इस प्रोत्साहन से वे चीजें भी भारत में बनने लगेंगी, जो आज नहीं बन पाती हैं।
देश में नए श्रमिक सुधारों की रखी गई नींव
इस देश में श्रमिकों के लिए कानूनों के इतने बड़े-बड़े जाल और जंजाल थे कि मजदूर को अपने अधिकारों की प्राप्ति लगभग असंभव हो गई थी। अब हमारी सरकार ने संसद में नए विधेयकों को पारित करा कर देश में नए श्रमिक सुधारों की नींव रख दी है। इन नए श्रमिक कानूनों के माध्यम से भारत के करीब 50 करोड़ संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को वेतन समय पर देना और उनकी सेवाओं को सुरक्षित रखना अनिवार्य कर दिया गया है। दीनदयाल जी ने देश के श्रमिकों के कल्याण के लिए जो सोचा था, उसे आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरा किया जा रहा है। खेत-खलिहान से लेकर जंग के मैदान तक भारत अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता हासिल कर ले, यही आत्मनिर्भर भारत का हमारा संकल्प है और यही इस देश के सामने एकमात्र विकल्प भी है।
(दीनदयाल स्मृति व्याख्यान में रक्षा मंत्री की ओर से दिए गए संबोधन का संपादित अंश)