एससी/एसटी कानून मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में
नई दिल्ली: एससी/एसटी कानून का मामला फिर सुप्रीम कोर्ट के पाले पहुंच गया है. इस बार मामला पिछले से कुछ अलग है. कानून में संशोधन वाला जो विधेयक केंद्र सरकार ने पारित किया है, उस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार को नोटिस जारी करते हुए 6 हफ्ते में जवाब-तलब किया है.सुप्रीम कोर्ट अब एससी/एक्ट एक्ट में केंद्र की ओर से किए गए संशोधन पर गौर करेगा और उसके निहितार्थ समझेगा. इस मामले में वकील पृथ्वी राज चौहान और प्रिया शर्मा ने याचिका दाखिल की है जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 6 हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है.
ये है संशोधित कानून
एससी/एसटी संशोधन में नए प्रावधान 18ए के लागू होने से दलितों को सताने के मामले में तत्काल गिरफ्तारी होगी और अग्रिम जमानत भी नहीं मिल पाएगी. याचिका में इसी प्रावधान पर एतराज जताया गया है. साथ ही, संशोधित कानून को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है. एससी/एसटी संशोधन कानून 2018 को लोकसभा और राज्यसभा ने पास कर दिया था और इसे अब अधिसूचित भी कर दिया गया है.
संशोधित कानून के तहत मामला दर्ज होते ही गिरफ्तारी होगी और आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी. आरोपी अगर हाईकोर्ट में गुहार लगाए तभी उसे नियमित जमानत मिलने का प्रावधान है. मामले की छानबीन इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी ही कर सकेंगे. अगर किसी ने दलितों के खिलाफ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया, तो फौरन मामला दर्ज होगा. ऐसे मामले की सुनवाई सिर्फ विशेष अदालत में होगी.
सरकार की उलटबांसी!
दरअसल, दो वकील-प्रिया शर्मा, पृथ्वी राज चौहान और एक NGO ने जनहित याचिका दायर कर सरकार के संशोधन कानून को चुनौती दी है. याचिका में एससी-एसटी एक्ट पर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक के सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के केंद्र सरकार के एससी-एसटी संशोधन कानून 2018 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट के दो वकील प्रिया शर्मा, पृथ्वी राज चौहान और एक NGO ने जनहित याचिका दायर कर सरकार के संशोधन कानून को चुनौती दी है.याचिका में कहा गया है कि सरकार का नया कानून असंवैधानिक है क्योंकि सरकार ने सेक्शन 18 ए के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाया है जोकि गलत है और सरकार के इस नए कानून आने से अब बेगुनाह लोगों को फिर से फंसाया जाएगा. याचिका में यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के नए कानून को असंवैधानिक करार दे और जब तक ये याचिका लंबित रहे, तब तक कोर्ट नए कानून के अमल पर रोक लगाए. आपको बता दें कि राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी करने वाले एससी एसटी संशोधन कानून 2018 को मंजूरी दी थी. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद एससी एसटी कानून पूर्व की तरह सख्त प्रावधानों से लैस हो गया है.
ये है सरकार का संशोधन कानून
राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद संशोधन कानून प्रभावी हो गया है. इस संशोधन कानून के जरिये एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून में धारा 18 ए जोड़ी गई है जो कहती है कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है. और न ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है. संशोधित कानून में ये भी कहा गया है कि इस कानून के तहत अपराध करने वाले आरोपी को अग्रिम जमानत के प्रावधान (सीआरपीसी धारा 438) का लाभ नहीं मिलेगा. यानि अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी. संशोधित कानून में साफ कहा गया है कि इस कानून के उल्लंघन पर कानून में दी गई प्रक्रिया का ही पालन होगा.
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को दिए गए फैसले में एससी एसटी कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशा-निर्देश जारी किए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून में शिकायत मिलने के बाद तुरंत मामला दर्ज नहीं होगा डीएसपी पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच करके पता लगाएगा कि मामला झूठा या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है. इसके अलावा इस कानून में एफआईआर दर्ज होने के बाद अभियुक्त को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा. सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरी ली जाएगी. इतना ही नहीं कोर्ट ने अभियुक्त की अग्रिम जमानत का भी रास्ता खोल दिया था. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देशव्यापी विरोध हुआ था. जिसके बाद सरकार ने कानून को पूर्ववत रूप में लाने के लिए एससी एसटी संशोधन बिल संसद में पेश किया था और दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था.