साल 2020 की 6 बड़ी अंतरराष्ट्रीय घटनाएं

चीन से कोरोना वायरस का प्रसार
साल 2020 की शुरुआत में ही दुनिया के सामने एक चीन से निकला एक वायरस चुनौती के रूप में सामने खड़ा दिखा. साल 2019 के अंत में चीन के वुहान शहर से निकले इस वायरस ने धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपनी जद में लिया. नवंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में इसका पहला मामला सामने आया था जिसके बाद दिसंबर महीने तक इसने पूरे वुहान समेत चीन के कई हिस्सों को अपनी चपेट में ले लिया. 30 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को लेकर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा की.
चीन के बाद 31 जनवरी को इटली में चीन से आए दो पर्यटकों में संक्रमण पाया गया. 19 मार्च तक आते आते इटली में कोरोना से होने वाली मौत का आंकड़ा चीन से कहीं ज्यादा हो गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन यूरोप को कोरोना का एक्टिव सेंटर घोषित कर दिया. 26 मार्च तक अमेरिका ने चीन और इटली दोनों को पीछे छोड़ते हुए संक्रमितों की सबसे ज्यादा संख्या में पहला स्थान हासिल कर लिया था. रिसर्च के आधार पर ये पता चला कि न्यूयॉर्क में कोरोना का संक्रमण एशिया और चीन से आए लोगों की तुलना में यूरोप से आए पर्यटकों के जरिए अधिक फैला है.
अब तक दुनियाभर में 7 करोड़ 27 लाख 15 हजार 369 लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं. वहीं दुनियाभर में 16 लाख 20 हजार 351 लोगों की मौत हो चुकी है. लेकिन हैरानी की बात है कि जिस देश से वायरस निकला उसने दुनिया के अन्य देशों ज्यादा तबाही मचाई. क्योंकि चीन ने समय रहते इस पर नियंत्रण कर लिया और यही कारण है कि वहां अभी तक संक्रमण से मरने वाले लोगों की संख्या 4634 ही है. जबकि अमेरिका, भारत और ब्राजील जैसे देशों ये आंकड़ा लाख को पार कर चुका है. इटली यूरोप का पहला देश था जो कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था.साथ ही यहां दुनिया में सबसे पहले लॉकडाउन लगाया गया था. फरवरी में लॉकडाउन लगाने की शुरुआत की गई और मार्च आते-आते पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया गया. साल खत्म होने तक इटली में कोरोना से अब तक 64 हजार 520 मौतें दर्ज की गई हैं. पर्टयन के लिए मशहूर इटली से इस वायरस को तेजी से दुनियाभर में फैलने में मदद मिली. जून-जुलाई तक आते आते इसने यूरोप, एशिया और अमेरिका तक को अपनी चपेट में ले लिया. अमेरिका में अब तक इस संक्रमण के 1 करोड़ 67 लाख मामले सामने आ चुके हैं और 3 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं ब्राजील में 69 लाख केस समाने आए हैं और 1 लाख 88 हजार से ज्यादा की मौत हुई है.
भारत में इस संक्रमण का पहला मामला वैसे तो 30 जनवरी 2020 को सामने आया था लेकिन जानकार ऐसा मानते हैं कि इसकी शुरूआत नवंबर 2019 से ही हो चुकी थी. लेकिन पहले देश में बड़े पैमाने पर टेस्ट की सुविधा नहीं होने के कारण इसका पता नहीं चल सका था. 30 जनवरी को भी भारत में इस संक्रमण की पुष्टि चीन से आने वाले यात्री से ही हुई थी. भारत में 25 मार्च से लॉकडाउन लगाया जो पहले 21 दिन फिर 19 दिन और फिर 14-14 दिन के लिए बढ़ाया गया. यह प्रक्रिया 31 मई 2020 तक जारी रही. हालांकि इसके बाद सरकार ने पाबंदियों के साथ लॉकडाउन हटाया. भारत में कोरोना वायरस के अब तक 98 लाख 84 हजार 716 मामले सामने आ चुके हैं और संक्रमण से अब तक 1 लाख 43 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
बगदाद में ईरानी सेनाध्यक्ष कासिम सुलेमानी की हत्या
3 जनवरी 2020 को इराक में बगदाद हवाई अड्डे पर अमेरिकी हवाई हमले में कासिम सुलेमानी की हत्या कर दी थी. कासिम सुलेमानी ईरान का सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडर और खुफिया प्रमुख मेजर जनरल था. जनरल सुलेमानी ईरान के सशस्त्र बलों की शाखा इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स या कुद्स फोर्स की अध्यक्षता भी कर रहा था. ये फोर्स सीधे देश (ईरान) के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई को रिपोर्ट करती है. इस हत्या के बाद अमेरिका ने अपने इस फैसले को सही बताते हुए कहा कि, ‘वह अमेरिकी प्रतिष्ठानों और राजनयिकों पर हमला करने की साजिश रच रहा था.’ इसी के साथ यह अमेरिकी सैन्य कर्मियों की रक्षा के लिए निर्णायक रक्षात्मक कार्रवाई है.सुलेमानी ने 1980 के ईरान-इराक युद्ध की शुरुआत में अपना सैन्य करियर शुरू किया और साल 1998 से कुद्स फोर्स का नेतृत्व शुरू किया. इसे ईरान की सबसे ताकतवर फौज के रूप में जाना जाता है. कासिम सुलेमानी को पश्चिम एशिया में ईरानी गतिविधियों को चलाने का प्रमुख रणनीतिकार माना जाता था. अमेरिका ने कुद्स फोर्स को साल 2007 से आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया और इस संगठन के साथ किसी भी अमेरिका के लेनदेन किए जाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया. अमेरिका सुलेमानी को अपने सबसे बड़े दुश्मनों में से एक मानता था. सुलेमानी को दूसरे देशों पर ईरान के रिश्ते मजबूत करने के लिए जाना गया, सुलेमानी ने यमन से लेकर सीरिया तक और ईराक से लेकर दूसरे मुल्कों तक रिश्तों का एक मज़बूत नेटवर्क तैयार किया. ट्रंप सरकार ईरान पर समय-समय पर प्रतिबंध लगाती रही.
वहीं, अमेरिका के दवाब में काफी देश जैसे यूएई और इज़राइल का रुख भी ईरान के लिए अच्छा नहीं रहा है. लेकिन इन तमाम परिस्थितियों के बावजूद कासिम सुलेमानी ने ईरान के कवच के रूप में इसकी रक्षा की. कुद्स फोर्स ईरान के रेवॉल्यूशनरी गार्ड्स की विदेशी यूनिट का हिस्सा है. इसे ईरान की सबसे ताकतवर और धनी फौज माना जाता है. कुद्स फोर्स का काम है विदेशों में ईरान के समर्थक सशस्त्र गुटों को हथियार और ट्रेनिंग मुहैया कराना. कासिम सुलेमानी इसी कुद्स फोर्स के प्रमुख थे. लेकिन अमेरिका ने उन्हें और उनकी कुद्स फोर्स को सैकड़ों अमेरिकी नागरिकों की मौत का ज़िम्मेदार करार देते हुए ‘आतंकवादी’ घोषित किया हुआ था. साल 2018 को सऊदी अरब और बहरीन ने ईरान की कुद्स फोर्स को आतंकवादी और इसके प्रमुख कासिम सुलेमानी को आतंकवादी घोषित किया था.
जॉर्ज फ्लॉयड की मौत, अमेरिका में अश्वेतों का प्रदर्शन
25 मई को अमेरिका में मिनेसोटा स्थित मिनेपोलिस शहर में 46 साल के एक रेस्टोरेंट के अश्वेत सिक्योरिटी गार्ड जॉर्ज फ्लॉयड (George Floyd) को जालसाजी से जुड़े एक मामले में पुलिस ने पकड़ा था. घटना का एक वीडियो वायरल हुआ था. वीडियो में साफ दिख रहा है कि जॉर्ज ने गिरफ्तारी के समय किसी तरह का विरोध नहीं किया. पुलिस ने उसके हाथों में हथकड़ी पहनाई और जमीन पर लिटा दिया. जिसके बाद एक पुलिस अधिकारी ने उसकी गर्दन को घुटनों से दबा दिया. जॉर्ज कहता रहा कि वह सांस नहीं ले पा रहा है और कुछ ही देर में वह बेहोश हो गया. अस्पताल में उसे मृत घोषित कर दिया.जॉर्ज की मौत से लोग आक्रोशित हो गए और रंगभेद की बात पर शहर में बवाल शुरू हो गया. शहर की कई दुकानों में लूटपाट की खबरें आईं. अमेरिका के कई शहरों में हुए इस हिंसक विरोध प्रदर्शन में 8 जून 2020 तक करीब 19 लोगों के मारे जाने की रिपोर्ट है. और इस हिंसा में 1400 से ज्यादा लोगों को अरेस्ट किया गया था. हिंसा के दौरान 500 मिलियन यूएस डॉलर की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था.
कई जगहों पर पुलिस ने लोगों को काबू में करने के लिए आंसू गैस और रबर बुलेट का इस्तेमाल किया. इस दौरान गोली लगने से एक शख्स की मौत हुई है. व्हाइट हाउस ने इस मामले में बयान जारी कर लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की. दुनिया के कई शहरों में इस घटना के विरोध में प्रदर्शनों की खबर आई. तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने संदेश में कहा था कि वे इस घटना से बेहद दुखी हैं और वह चाहते हैं कि जॉर्ज फ्लॉयड को इंसाफ मिले.
जापान में शिंजो आबे का सत्ता से हटना
जापान (Japan) के प्रधानमंत्री शिंजो आबे (Shinzo Abe) ने 28 अगस्त को घोषणा की कि स्वास्थ्य कारणों (health problems) से अपने पद से इस्तीफा दे देंगे. उनके इस ऐलान से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में लीडरशिप को लेकर होड़ शुरू हो गई. आबे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एलान किया, “मैंने प्रधानमंत्री के पद से हटने का फैसला किया है,” उन्होंने बताया कि वे अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative colitis) की समस्या का सामना कर रहे हैं. आबे ने कहा कि अब उनका नए सिरे से इलाज चल रहा है जिसके नियमित रूप से निगरानी की जरूरत है, ऐसे में वे अपने कर्तव्यों के निर्वहन में पर्याप्त समय नहीं दे पाएंगे. आबे ने कहा “अब ऐसे समय जब मैं विश्वास के साथ लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम नहीं हूं मैंने फैसला किया है कि मुझे अब प्रधानमंत्री पद से हट जाना चाहिए.” सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी जब तक उनके उत्तराधिकारी को नहीं चुनती.
14 सितंबर को मंत्रिमंडल के प्रमुख सचिव योशिहिदे सुगा को जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी का नया नेता चुना गया. वह आबे के काफी करीबी माने जाते हैं और 2006 से उनके समर्थक रहे हैं. आबे के उत्तराधिकारी को चुनने के लिए हुए आंतरिक मतदान में सुगा को सत्तारूढ़ लिबरल डेमाक्रेटिक पार्टी में 377 वोट मिले और अन्य दो दावेदारों को 157 वोट हासिल हुए थे.
सुगा ने कहा कि वह आबे की नीतियों को ही आगे बढ़ाएंगे और उनकी प्राथमिकता कोरोना वायरस से निपटना और वैश्विक महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था बेहतर करना होगा. इसके बाद जापान की संसद में 16 सितंबर को हुए मतदान में योशिहिदे सुगा को औपचारिक तौर पर नया प्रधानमंत्री चुना गया.
फ्रांस ‘शार्ली हेब्दो’ पत्रिका ने फिर छापा कार्टून, फिर हुई हिंसा
1 सितंबर को फ्रेंच व्यंग्य साप्ताहिक ‘शार्ली हेब्दो’ (Charlie Hebdo) ने कहा कि वह पैगंबर मोहम्मद (Prophet Mohammed) के बेहद विवादास्पद कार्टून को फिर से प्रकाशित कर रहा है ताकि हमले के कथित अपराधियों के इस सप्ताह मुकदमे की शुरुआत हो सके. मैगजीन के डायरेक्टर लौरेंट रिस सौरीस्यू ने लेटेस्ट एडिशन में कार्टून को फिर से छापने को लेकर लिखा, ‘हम कभी झुकेंगे नहीं, हम कभी हार नहीं मानेंगे.’ बता दें कि फ्रेंच व्यंग्य साप्ताहिक ‘शार्ली हेब्दो’ (Charlie Hebdo) के कार्यालय में 7 जनवरी, 2015 को दो आतंकी भाइयों ने अंधाधुंध गोलियां बरसाईं थीं. इस आतंकी हमले में 12 लोग मारे गए थे. इनमें से कुछ मशहूर कार्टूनिस्ट थे. हमलावरों ने एक सुपरमार्केट को भी अपना निशाना बनाया था. इस मामले में पेरिस में 2 सितंबर 2020 से ट्रायल शुरू होना था. मैगजीन के हालिया संस्करण में कवर पेज पर दर्जनभर कार्टून छापे थे. कवर पेज के बीच में पैगंबर मोहम्मद का कार्टून था. जीन काबूट ने इसे बनाया था. उन्हें काबू नाम से भी जाना जाता था. 2015 में हुए हमले में उनकी जान चली गई थी. इस सिंतबर 2020 अंक में फ्रंट पेज की हेडलाइन थी, ‘यह सब, बस उसी के लिए.’इस कार्टून के फिर से प्रकाशित किए जाने के बाद फ्रांस में कई जगहों पर कट्टरपंथियों ने इसके विरोध में हिंसक घटनाओं का अंजाम दिया. सिंतबर महीने में ही कुछ हफ्ते बाद ही एक पाकिस्तानी युवक ने पत्रिका के पूर्व कार्यालय के बाहर दो लोगों को चाकू से घायल कर दिया. हमलावर ने एक टीवी प्रोडक्शन एजेंसी के दो कर्मचारियों को गंभीर रूप से घायल कर दिया, जिनके कार्यालय उसी ब्लॉक पर थे जहां शार्ली हेब्दो का ऑफिस था.
इसके बाद 17 अक्टूबर को राजधानी पेरिस के पश्चिमी उपनगर कॉनफ्लैंस सेंट-होनोरिन में एक स्कूल के पास एक शिक्षक की सिर कलम कर हत्या हुई थी. इस मामले में नौ लोगों को गिरफ्तार किया है. हत्या 18 वर्षीय युवक द्वारा की गई थी, जिसे तब पेरिस के उत्तर-पश्चिम में कॉनफ्लैंस-सैंटे-होनोरिन में घटनास्थल के पास पुलिस ने गोली मार दी थी. पीड़ित 47 वर्षीय इतिहास के शिक्षक सैमुअल पैटी थे, जिन्होंने अपने विद्यार्थियों को पैगंबर मोहम्मद के कुछ कार्टून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विषय पर चर्चा के दौरान दिखाए थे.बता दें कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने इस घटना को इस्लामी आतंकवादी हमला करार दिया था. इसके बाद 29 अक्टूबर को फ्रांस (France) के शहर नीस (Nice) में गुरुवार को एक हमलावर ने चाकुओं से गोदकर तीन लोगों की जान ले ली. इनमें से एक महिला शामिल है, जिसका उसने सिर कलम कर दिया, जबकि कई अन्य हमले में घायल हो गए. पुलिस ने हमलावर को दबोच लिया है. नीस के मेयर ने इसे आतंकी हमला (Terrorist Attack) करार दिया है
ट्रंप की गई सत्ता, बाइडेन को मिली अमेरिकी की कमान
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव (US President Elections 2020) में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन (Joe Biden) ने 7 नवंबर को रिपब्लिकन पार्टी के अपने प्रतिद्वंद्वी डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को कड़े मुकाबले में हरा दिया. सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, पेन्सिलवेनिया राज्य में जीत दर्ज करने के बाद 77 वर्षीय पूर्व उपराष्ट्रपति बाइडेन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बनने के लिए रास्ता साफ हो गया. इस राज्य में जीत के बाद बाइडेन को 270 से अधिक ‘इलेक्टोरल कॉलेज वोट’ मिल गये जो जीत के लिए जरूरी थे.पेन्सिलवेनिया के 20 इलेक्टोरल वोटों के साथ बाइडेन के पास अब कुल 273 इलेक्टोरल वोट हो गये. डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने से पहले बाइडेन पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में उपराष्ट्रपति पद पर रह चुके हैं. वह डेलावेयर के सबसे लंबे समय तक सीनेटर रहे हैं. भारतवंशी सीनेटर कमला हैरिस (Kamala Harris) अमेरिका में उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होने वाली पहली महिला हैं. 56 वर्षीय हैरिस देश की पहली भारतवंशी, अश्वेत और अफ्रीकी अमेरिकी उपराष्ट्रपति होंगी. बाइडेन और हैरिस अगले वर्ष 20 जनवरी को पद की शपथ लेंगे.वर्ष 1992 में जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश के बाद ट्रंप ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जो पुन:निर्वाचन के प्रयास में विफल रहे. पेन्सिलवेनिया में ट्रंप के काफी पिछड़ जाने के बाद प्रमुख मीडिया संस्थानों ने बाइडेन को विजेता बताना आरंभ कर दिया था. पेनसिल्वेनिया, एरिजोना, नेवाडा और जॉर्जिया में मतगणना अभी भी चल रही है. इन चारों राज्यों में बाइडेन को अच्छी खासी बढ़त मिली थी.
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नई दिल्ली। साल 2020 कई बड़ी राजनीतिक घटनाओं का साक्षी रहा. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने सत्ता में हैट्रिक लगाई तो MP में कांग्रेस के भीतर बगावत का लाभ उठाते हुए BJP ने सत्ता में वापसी की. बिहार चुनाव में सत्ता विरोध लहर के बावजूद BJP-JDU ने सरकार बना ली. वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद इस साल कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन जारी रहा और वह अंदरूनी गुटबाजी से जूझती रही. यह साल गठबंधनों में उतार-चढ़ाव के नाम भी रहा. महाराष्ट्र में BJP से अलग शिवसेना की गठबंधन सरकार ने सत्ता में एक साल पूरा कर राजनीति में नई पहल के संकेत दिए तो कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल ने एनडीए छोड़ दिया. एलजेपी का बिहार में NDA छोड़ चुनाव लड़ने का दांव कई मायनों में सफल रहा.आइए ऐसे ही 10 बड़ी सियासी घटनाओं पर डालते हैं नजर…
केजरीवाल की दिल्ली में हैट्रिक :
संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में दिल्ली समेत देश भर में जनवरी में प्रदर्शन हुए. शाहीनबाग आंदोलन का सबसे बड़ा केंद्र उभरा. इसी मुद्दे पर सियासी उफान के बीच दिल्ली में फरवरी 2020 में विधानसभा चुनाव हुए. मगर दिल्ली में ध्रुवीकरण नहीं चला और अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (AAP) ने 70 में से 62 सीटें जीतकर तीन चौथाई बहुमत हासिल किया. BJP को आठ सीटें और कांग्रेस शून्य पर रही.
मध्य प्रदेश में फिर शिवराज का राज :
मध्य प्रदेश में मामूली बहुमत के सहारे चल रही कमलनाथ की सरकार मार्च 2020 में गिर गई. कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में कांग्रेस के 25 विधायकों ने बगावत कर इस्तीफा दे दिया. करीब एक माह विधायक कर्नाटक के होटल में रहे. 23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान फिर MP के मुख्यमंत्री बने. कोविड-19 की चुनौती के बीच 25 विधायकों की खाली हुई सीटों पर उपचुनाव में BJP 19 सीटें जीत गई. इससे सरकार पर उसकी पकड़ और मजबूत हुई.
राजस्थान में एमपी को दोहराने की नाकाम कोशिश
राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार को भी जुलाई 2020 में उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की अगुवाई में बगावत का सामना करना पड़ा. पायलट समेत 19 विधायकों ने हरियाणा में डेरा डाल दिया. गहलोत और पायलट खेमे के बीच सियासी जोर आजमाइश एक माह चलती रही. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के दखल के बाद पायलट माने. पायलट ने 10 अगस्त 2020 को सुलह समझौते की बात मान ली.
अकाली दल ने एनडीए छोड़ा
शिवसेना के बाद BJP के सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी अकाली दल ने भी साथ छोड़ दिया. कृषि बिलों को संसद में पारित कराने के मुद्दे पर अकाली दल ने 26 सितंबर 2020 को एनडीए से 22 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया. अकाली नेता हरसिमरत कौर ने केंद्रीय मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया. एनडीए में अब आरपीआई समेत कुछ छोटे दल ही रह गए हैं. एलजेपी भी बिहार में NDA से अलग हो गई. हालांकि राम विलास पासवान के निधन के बाद केंद्र सरकार में एलजेपी का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रहा. पासवान की राज्यसभा की खाली सीट पर भी सुशील मोदी को चुना गया.
बिहार चुनाव में चुके पर तेजस्वी का उदय
लोकसभा चुनाव 2019 में करारी हार के बाद राजद नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सवालिया निशान थे. अक्तूबर 2020 के पहले तक बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में BJP-JDU गठबंधन की एकतरफा जीत के कयास लग रहे थे. लेकिन तेजस्वी के तीखे चुनाव प्रचार, पिता लालू प्रसाद यादव की तरह जनता से जुड़ने की शैली ने माहौल बदला. राजद 75 सीटों के साथ बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बिहार विधानसभा चुनाव की 243 सीटों में NDA को बहुमत से सिर्फ दो ज्यादा 125 सीटें मिलीं. राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं.
नड्डा ने संभाली बीजेपी की कमान
बीजेपी में अमित शाह (Amit Shah) के ऐतिहासिक कार्यकाल के बाद वरिष्ठ नेता जगत प्रकाश नड्डा (JP Nadda) को जनवरी 2020 में पार्टी का अध्यक्ष चुना गया. 6 अप्रैल 2020 को बीजेपी के स्थापना दिवस पर उन्होंने पद संभाला. शाह के NDA 2.0 में गृह मंत्रालय संभालने के बाद जुलाई 2019 में उन्हें बीजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था. नड्डा के नेतृत्व में भाजपा ने बिहार चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया. गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में भी भाजपाशासित सरकारों को कामयाबी मिली. बंगाल में 2021 का विधानसभा चुनाव नड्डा के लिए बड़ा इम्तेहान होगा.
कांग्रेस के 23 असंतुष्ट नेताओं ने उठाए सवाल
चुनावों में लगातार निराशाजनक प्रदर्शन के बीच कांग्रेस (Congress) के शीर्ष नेतृत्व को भी असंतोष का सामना करना पड़ा. अगस्त 2020 में गुलाम नबी आजाद समेत कांग्रेस के 23 नेताओं का एक पत्र सामने आया. इन नेताओं में आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी, भूपेंदर सिंह हुड्डा आदि शामिल थे. पत्र में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने संगठन चुनाव समेत तमाम मांगें उठाई गईं. कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक में भी इस पर तीखी जुबानी जंग देखने को मिली. बिहार (Bihar Results) और उपचुनाव के नतीजों के बाद फिर असंतुष्ट नेताओं ने अपने तेवर जाहिर किए.
किसान आंदोलन की आंच दिल्ली पहुंची
कृषि कानूनों (Farm Laws) के खिलाफ अक्टूबर के अंत में पंजाब में शुरू हुआ किसान आंदोलन (Farmers Protest) 25-26 नवंबर 2020 को दिल्ली की चौखट पर आ पहुंचा. ट्रैक्टर-ट्रालियों में सवार हजारों किसानों का काफिला पानी की बौछारों, लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोलों को झेलते हुए दिल्ली में डेरा डाल दिया. किसानों ने दिल्ली-हरियाणा के सिंघु और टिकरी बॉर्डर को कब्जे में ले लिया है. दिल्ली-जयपुर हाईवे पर नया मोर्चा खोल दिया गया. किसानों और केंद्र के बीच छह दौर की वार्ता के बावजूद कृषि कानूनों पर गतिरोध कायम है.
महाराष्ट्र में शिवसेना गठबंधन का एक साल
महाराष्ट्र में BJP से अलग होकर नवंबर 2019 में कांग्रेस और एनसीपी के साथ शिवसेना सरकार ने एक साल पूरा किया. इसे देश में गठबंधन राजनीति में नया बदलाव माना जा रहा है. कांग्रेस और एनसीपी से वैचारिक अंतर्विरोधों के कारण माना जा रहा था कि महाराष्ट्र विकास अघाडी की सरकार ज्यादा दिन नहीं टिकेगी. चुनावी राजनीति से दूर रहे उद्धव ठाकरे एक मंझे राजनेता के तौर पर उभरे. विधानपरिषद चुनाव में गठबंधन ने बीजेपी को पटखनी दी.
कंगना-उद्धव सरकार में तनातनी
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की 14 जून 2020 को मौत के बाद उठ् सियासी बवंडर महाराष्ट्र से लेकर बिहार की राजनीति को हिला दिया. अभिनेत्री कंगना रनौत ने सीधे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर हमला बोला. उनके बंगले को BMC ने तोड़ा, जिसे हाईकोर्ट ने बाद में गलत ठहराया. मगर कंगना के तीखे तेवर कायम रहे. भाजपा और कुछ अन्य दल कंगना के पाले में खड़े दिखे तो अघाडी गठबंधन विरोध में. केंद्र से कंगना को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिलने के मुद्दे पर भी खूब विवाद हुआ.
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2020 में इन भारतीय कारों ने बढ़ाया देश का गौरव
नई दिल्ली, ऑटो डेस्क। मेड इन इंडिया कारों के लिए काफी सालों एक ये कहा जाता रहा है कि इनमें सेफ्टी फीचर्स काफी कम होते हैं जिसकी वजह से एक्सीडेंट के दौरान ये ड्राइवर और पैसेंजर्स की सुरक्षा की गारंटी नहीं दे पाती हैं। हालांकि साल 2020 ने इन बातों को गलत साबित कर दिया है। इस साल हुए Global NCAP क्रैश टेस्ट में भारतीय कारों का जलवा रहा है। आपको बता दें कि भारत की दिग्गज ऑटोमोबाइल कंपनियों की पॉपुलर कारों ने इस साल हुए Global NCAP क्रैश टेस्ट में बेस्ट सेफ्टी रेटिंग हासिल करके देश का गौरव बढ़ाया है और इस बात को साबित कर दिया है भारतीय कारें भी किसी से कम नहीं हैं। आज हम आपको उन्हीं कारों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने इस साल सबसे ज्यादा सेफ्टी रेटिंग हासिल की है।
Mahindra Thar: हाल ही में लॉन्च हुई महिंद्रा थार 2020 को ग्लोबल एनसीएपी NCAP क्रैश टेस्ट में 4-स्टार रेटिंग दी गई है, जो सेफ्टी के लिहाज से काफी अच्छी मानी जाती है। महिंद्रा थार को चाइल्ड सेफ्टी और अडल्ट सेफ्टी में 4 स्टार रेटिंग दी गई है। 2020 थार को मानक के रूप में डुअल फ्रंट एयरबैग मिलते हैं। ग्लोबल एनसीएपी परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार क्रैश टेस्ट में चालक और यात्री के सिर और गर्दन में अच्छी सुरक्षा मिलती है। वहीं रिपोर्ट में यह भी पता चलता है कि चालक की छाती को और यात्री की छाती को अच्छी सुरक्षा मिली है।Mahindra XUV300: ग्लोबल NCAP क्रैश टेस्ट में Mahindra XUV300 को 5-स्टार सेफ्टी रेटिंग मिल चुकी है। Mahindra XUV300 को 17 पॉइंटस में से 16.42 पॉइंट्स मिले हैं। Mahindra XUV300 सबसे ज्यादा सेफ कारों में पहले पायदान पर है। इस कार को एडल्ट सेफ्टी में 5 स्टार मिले और साथ ही चाइल्ड सेफ्टी में इस 4 स्टार मिले हैं। XUV300 को 49 पॉइंट्स में से 37.44 पॉइंट मिले हैं। ये एक सब-कॉम्पैक्ट एसयूवी है जो भारत में बेहद ही पॉपुलर है।
Mahindra Marazzo: Mahindra Marazzo वैसे तो एमपीवी (मल्टी पर्पज व्हीकल) है लेकिन सेफ्टी के मामले में इसका भी कोई जवाब नहीं है। Global NCAP क्रैश टेस्ट की बात करें तो मराजो को 4-स्टार रेटिंग मिल चुकी है। एडल्ट सेफ्टी के लिए इसे 4 स्टार रेटिंग तो वहीं चाइल्ड सेफ्टी में इसे 2-स्टार रेटिंग मिल चुकी है। भारत में ये एक पॉपुलर फैमिली कार है जो बेहतरीन फीचर्स से लैस है।Tata Altroz: Tata Altroz को Global NCAP क्रैश टेस्ट में 5 स्टार सेफ्टी रेटिंग दी गई है जिससे ये पता चलता है कि ये कार पूरी तरह से सुरक्षित है। Tata Altroz को टाटा मोटर्स के लेटेस्ट अल्फा प्लेटफॉर्म पर बनाया गया है, इस कार में ड्यूल एयरबैग्स, एंटी लॉक ब्रेकिंग सिस्टम, रियर पार्किंग सेंसर, रेन सेंसिंग वाइपर और ईबीडी, क्रूज कंट्रोल जैसे फीचर्स दिए गए हैं। क्रैश टेस्ट के दौरान इस कार को अडल्ट सेफ्टी के लिए 17 में से 16.13 पॉइंट और चाइल्ड प्रोटेक्शन के मामले में भी 3 स्टार मिले हैं। चाइल्ड प्रोटेक्शन के लिए इस कार को 49 में से 29 पॉइंट मिले हैं।
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रक्तरंजित ‘ममता’ राज
पश्चिम बंगाल के दौरे पर गए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी के लोगों ने हमला कर दिया तो कोलकोता से लेकर दिल्ली तक हर कोई हिल गया। बंगाल में राजनीतिक झड़पों में बढ़ोतरी के पीछे मुख्य तौर पर तीन वजहें मानी जा रही हैं- बेरोज़गारी, विधि-शासन पर सत्ताधारी दल का वर्चस्व और भाजपा का उभार।
मनोज वर्मा
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में यूं तो राजनीतिक हिंसा की घटनाएं लगातार घट रही हैं लेकिन हद तो तब हो गई जब पश्चिम बंगाल के दौरे पर गए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी के लोगों ने हमला कर दिया तो कोलकोता से लेकर दिल्ली तक लोकतंत्र में आस्था रखने वाला हर कोई भीतर से हिल गया। क्योंकि किसी भी लोकतंत्रिक राज्य की पहली कसौटी यह होती है कि उसके शासन में लोग कितनी स्वतंत्रता के साथ अपनी बात कह सकते हैं लेकिन पश्चिम बंगाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमले और लगातार एक के बाद एक भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की घटनाओं ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार को कटघरे में खडा कर दिया है। नड्डा के काफिले में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय,राष्ट्रीय सचिव डॉ अनुपम हाजरा,पार्टी के सांगठनिक महा सचिव शिव प्रकाश सहित भाजपा के कई राष्ट्रीय नेताओं की गाडिय़ां शामिल थीं, जिन पर हमले किए गए। पश्चिम बंगाल प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय की गाडिय़ों में तोडफ़ोड़ की गई है। भाजपा का आरोप है कि स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत से यह हमला किया गया है।
दरअसल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर यह हमला तब हुआ जब वे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के संसदीय क्षेत्र डायमंड हार्बर में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे थे। जैसे ही भाजपा नेताओं का काफिला शिराकोल के पास पहुंचा, वहां सडक़ के दोनों ओर बड़ी संख्या में पहले से एकत्रित तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भाजपा नेताओं की गाडिय़ों पर हमला बोल दिया। उनकी गाडिय़ों पर ईंट-पत्थर फेंके गए। पुलिस मौजूद थी लेकिन किसी को भी रोकने की कोशिश नहीं की गई। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि अभिषेक बनर्जी के इशारे पर हमले हुए हैं। उल्लेखनीय है कि एक दिन पहले भी कोलकाता के हेस्टिंग्स इलाके में भारतीय जनता पार्टी के नवनिर्मित कार्यालय का उद्घाटन करने पहुंचे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की सुरक्षा में चूक हुई थी। तृणमूल कांग्रेस के लोगों ने दफ्तर में घुसकर काले झंडे दिखाने की कोशिश की थी। इसे लेकर प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र भी लिखा था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमले की घटना को
गंभीरता से लेते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से इस मामले में रिपोर्ट तलब की है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमले की घटना से पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी आहत हैं जिहाजा इस हमले की घटना के बाद उन्होंने अपनी रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेज दी। अपनी रिपोर्ट में राज्यपाल ने कहा है कि भाजपा अध्यक्ष के दौरे के दौरान सुरक्षा व्यवस्था में कमी रही। राज्यपाल जगदीप धनखड़ कहते हैं कि’किसी भी राज्य में राजनीतिक हिंसा लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को धक्का पहुंचाने वाली घटना थी। जब मुझे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के दौरे का पता चला था तो मैंने राज्य के डीजीपी को अलर्ट किया था। इसके अलावा मैं मुख्य सचिव से भी संपर्क में था। मैंने उन्हें सिर्फ सूचित नहीं किया बल्कि इनपुट भी दिए लेकिन इसके बाद माहौल नहीं सुधारा गया।’असल में राज्यपाल जगदीप धनखड़ की राज्य में राजनीतिक हिंसा को लेकर चिन्ता जायज भी हैं क्योंकि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा की घटनाएं राजनीतिक व्यवस्था और लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।
वैसे कुछ दिन पहले ही राज्य में भाजपा विधायक देवेंद्र नाथ रे की कथित आत्महत्या की घटना ने भी हर किसी को हिल दिया था। विधायक देवेंद्र नाथ रे की पत्नी को अपने पति की मौत का रहस्य जानने के लिए भी अदालत का दरवाजा खटखटाना पडा। यह ‘ममता’का राज है। पर यह कितना अभद्र और असहिष्ण है कि अपने विरोधियों से अपनी विचारधारा के साथ जीने की स्वतंत्रता भी छीन लेता है। विधायक देवेंद्र नाथ रे की संदिग्ध मौत को संज्ञान लेते हुए राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने ट्वीट किया कि विधायक देवेंद्र नाथ रे की मृत्यु, हत्या के आरोपों सहित गंभीर मुद्दों को उठाती है। सच्चाई को उजागर करने और राजनीतिक हिंसा को रोकने के लिए पूरी निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है। दरअसल भद्रलोक की छवि वाला पश्चिम बंगाल, मामता शासन में बढती राजनीतिक हिंसा, हिन्दू विरोधी दंगों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या के लिए कुख्यात हो गया है। इसलिए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा कहते भी है कि ‘ ममता सरकार में गुंडा राज है और यह कानून-व्यवस्था की विफलता है। लोग ऐसी सरकार को माफ नहीं करेंगे’।
जाहिर है सहिष्णुता और लोकतंत्र में आस्था रखने वाला हर कोई राजनीति हिंसा का इसी प्रकार विरोध करेगा लेकिन चीन के कम्युनिस्ट नेता माउ त्से तुंग ने कहा था,’सत्ता बंदूक की नली से निकलती है’। लिहाजा लंबे समय तक वामदलों के शासन वाले इस पश्चिम बंगाल में सत्ता तो बदली लेकिन ममता के राज में राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या को देखा जाए तो बंगाल की राजनीतिक हिंसा का पैटर्न ठीक उसी प्रकार है जो एक दशक पूर्व वामपंथी राज में था। अंतर इतना है कि हमलावर वहीं हैं लेकिन उनकी पार्टी बदल गई है। पर राजनीतिक हिंसा की यह घटनाएं लोकतंत्र की आत्मा को छलनी करते हुए नेताजी के सपने सोनार बांग्ला को धराशायी कर रही है। लोकतंत्र का मूल सिद्धांत राजनीतिक स्वतंत्रता,कानून का शासन और समानता है। तो दूसरी ओर तानाशाही की विशेषताएं नागरिक स्वतंत्रता का हनन और राजनीतिक विरोधियों का दमन भी है। इसलिए पश्चिम बंगाल में उत्तर दिनाजपुर में आरक्षित सीट हेमताबाद के भाजपा विधायक देवेंद्र नाथ रे की मौत ने कई सवाल खडे कर दिए थे। अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा पर हमले के बाद राज्य की व्यवस्था पर कोई भरोसा करें भी तो कोई कैसे करें। पर यह ‘ममता’ का राज है।
वैसे देखा जाए तो 19 मई 2019 के बाद से जिस बडी संख्या में राजनीतिक हिंसा की घटनाएं इस राज्य में सामने आई हैं वह चिन्ता पैदा करने वाली हैं। क्योंकि हिंसा की यह राजनीतिक घटनाएं लोकसभा चुनाव के बाद की हैं यह घटनाएं पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान और जनता के जनादेश के बाद उभर कर सामने आई थी। लोकसभा चुनाव के बाद नेशनल यूनियन आफ जर्नालिस्ट यूनियन इंडिया ने अपने सामाजिक दायित्व को समझते हुए पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हिंसा की एक एक छोटी बडी घटना को एकत्र करना ओर उसका विश्लेषण करना शुरू किया तो रक्तरंजित बंगाल की तस्वीर उभर कर सामने आई। उस पश्चिम बंगाल की जो अपने स्वतंत्रता संग्राम में महान योगदान,साहित्य—कला और भद्र लोक की छवि के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। लेकिन यह सवाल भी अपने में विश्लेषण का हैं कि आखिर 19 मई 2019 के बाद भी पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा क्यों हुई या हो रही है। दरअसल लोकसभा चुनाव में मतदान और परिणाम सामने आने के बाद राज्य में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनीतिक हिंसा ने कई नए सवाल खडे कर दिए। कारण 19 मई 2019 से 21 जून 2019 के बीच घटी 150 हिंसक और संघर्ष वाली घटनाओं में में 16 भाजपा कार्यकर्ता मारे गए और एक तृणमूल कांग्रेस का। इसी प्रकार 158 घायलों में 136 भाजपा कार्यकर्ता थे और 16 तृणमूल कांग्रेस के थे जबकि एक पुलिस कर्मी घायला हुआ और पांच आम नागरिक। हांलाकि एक तथ्य यह भी है कि इन कई ऐसी घटनाएं भी घटी जो थाने में दर्ज हुई इसलिए उन्हें मीडिया में भी स्थान नहीं मिला। वैसे करीब एक माह के दौरान पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में 150 घटनाएं रक्तरंजित राजनीति,सांप्रदायिक टकराव के रूप में सामने आती हैं और बौद्धिक दृष्टि से जागरूक माने जाने वाले पश्चिम बंगाल में मीडिया इन घटनाओं को वृहद रूप में नहीं देखता या लिखता या उसका विश्लेषण नहीं करता तो सवाल मीडिया की भूमिका पर भी उठता है।
यह बात आसानी से कह दी जाती है कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा कोई नई बात नहीं, यह तो वर्षों से हो रहा है। पहले वाममोर्चा के लोग यही करते थे, उसके पहले कांग्रेस करती थी और आज तृणमूल ने उसका स्थान ले लिया है। कहने को तो यह सच। नक्सलवाड़ी आंदोलन को कुचलने के लिए कांग्रेस के सिद्धार्थशंकर राय ने किस तरह क्रूरता से दमन कराया उसका पूरा चिट्ठा सामने आ चुका है। कई हजार लोग उस समय मार डाले गए। वाममोर्चा सरकार आई तो उसने प्रतिशोध के भाव में काम करना आरंभ किया। राजनीतिक हिंसा का एक लंबा दौर चला पश्चिम बंगाल में। तृणमूल कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद वामदलों के कारनामों की कुछ फेहरिस्त विधानसभा के रिकॉर्ड पर लाया जिनमें एक यह भी था कि उनके 1977 से 2007 तक के कार्यकाल में 22,000 राजनीतिक हत्याएं हुई । लेकिन जो पहले हुआ उसके आधार पर आज की हिंसा को सही नहीं ठहराया जा सकता। इसका मतलब तो हुआ कि कोई आए पश्चिम बंगाल ऐसा ही रहेगा। वास्तव में पश्चिम बंगाल की सत्ता संरक्षित और प्रायोजित हिंसा लोकतंत्र के नाम पर सबसे बड़ा धब्बा बन चुका है।
दरसअल पश्चिम बंगाल में हिंसा और राजनीति एकदूसरे के पूरक हैं। जब भी पश्चिम बंगाल में राजनीति की बात होती है तो पहले वहां की सियासी हिंसा की चर्चा होती है। देश के करीब-करीब हर राज्य में चुनाव के दौरान हिंसा की छिटपुट घटनाएं होती हैं यानि इन राज्यों में हिंसा चुनावी होती है। वहीं, पश्चिम बंगाल में हिंसा का नाता चुनाव से नहीं राजनीति से हो गया है। पश्चिम बंगाल में दशकों से राजनीतिक हिंसा आम बात है। पश्चिम बंगाल में कहीं किसी पार्टी की रैली हो, बड़े नेता का दौरा हो, कोई विरोध प्रदर्शन हो तो हिंसा होना आम सा हो गया है। कुछ समय पहले ही 24 परगना जिले में भाजपा कार्यालय पर कब्जे की सूचना पाकर वहां जा रहे पार्टी सांसद अर्जुन सिंह पर हमला कर दिया गया जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गए। भाजपा ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया। पश्चिम बंगाल में कोरोना लॉकडाउन काल में भी विभिन्न इलाकों में हिंसा की घटनाएं तेज हो रही हैं। कोलकाता से ही सटे दक्षिण 24-परगना जिले में वामपंथी संगठन एसयूसीआई और तृणमूल कांग्रेस के बीच हुई हिंसक झड़पों में दोनों दलों के एक-एक नेता की हत्या कर दी गई और दर्जनों घर जला दिए गए। मुर्शिदाबाद जिले में दो लोगों की मौत देसी बम बनाते समय विस्फोट की वजह से हुई।
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कुछ दिन पहले कोलकाता में अपनी एक वर्चुअल रैली में कहा भी था कि राज्य में हिंसा और राजनीति का अपराधीकरण असहनीय स्तर तक पहुंच गया है। वैसे बात केवल राजनीतिक हिंसा का नहीं है बल्कि राज्य में जिस तरह से हिन्दुओं पर हमले की घटनाओं में वृद्धि हुई है उससे यह लगता है कि राज्य में हिन्दुओें के दमन और पलायन के सुनियोजित ढंग से हिंसा से हो रही है या करवाई जा रही है। 24 परगना, मुर्शिदाबाद, बिरभूम, मालदा आदि ऐसे कई उदाहरण सामने हैं। हालात तब ज्यादा बिगड़ने लगे हैं जबकि बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी भी राज्य में डेरा जमाए हुए हैं। राज्य में हिन्दू आबादी का संतुलन बिगाड़ने की साजिश लगातार जारी है। मुस्लिमों ने हिन्दुओं की जनसंख्या को फसाद और दंगे के माध्यम से पलायन के लिए मजबूर किया।
वैसे वामपंथी शासन की बात हो ममता के राज की। पश्चिम बंगाल राजनीतिक हिंसा की घटनाओं के चलते सुर्खियों में ही रहा है। सत्ता बदली लेकिन राजनीति का चरित्र नहीं बदला। विकास की राह पर चलना था लेकिन उन्माद की ओर चल निकला। जैसे हिंसा को ही शासन और चुनाव जीतने का मूल मंत्र मान लिया गया हो। बीते लगभग पांच दशकों के दौरान यह राजनीतिक बर्चस्व की लड़ाई में हत्याओं और हिंसा को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। इस दौरान सत्ता संभालने वाले चेहरे जरूर बदलते रहे, लेकिन उनका चाल-चरित्र रत्ती भर भी नहीं बदला। दरअसल, साठ के दशक में उत्तर बंगाल के नक्सलबाड़ी से शुरू हुए नक्सल आंदोलन ने राजनीतिक हिंसा को एक नया आयाम दिया था। किसानों के शोषण के विरोध में नक्सलबाड़ी से उठने वाली आवाजों ने उस दौरान पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरी थीं। नक्सलियों ने जिस निर्ममता से राजनीतिक काडरों की हत्याएं की, सत्ता में रही संयुक्त मोर्चे की सरकार ने भी उनके दमन के लिए उतना ही हिंसक और बर्बर तरीका अपनायां। वर्ष 1971 में सिद्धार्थ शंकर रे के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद तो राजनीतिक हत्याओं का जो दौर शुरू हुआ उसने पहले की तमाम हिंसा को पीछे छोड़ दिया।कांग्रेस शासनकाल के दौरान राज्य में विपक्ष की आवाज दबाने के लिए इस हथियार का इस्तेमाल होता रहा।
वर्ष 1977 के विधानसभा चुनावों में यही उसके पतन की भी वजह बनी। उसके बाद बंगाल की राजनीति में कांग्रेस इस कदर हाशिए पर पहुंची कि अब वह राज्य की राजनीति में अप्रासंगिक हो चुकी है। वर्ष 1977 में भारी बहुमत के साथ सत्ता में आए लेफ्ट फ्रंट ने भी कांग्रेस की राह ही अपनाई। सत्ता पाने के बाद हत्या को संगठित तरीके से राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू किया। वर्ष 1977 से 2011 के 34 वर्षों के वामपंथी शासन के दौरान जितने नरसंहार हुए उतने शायद देश के किसी दूसरे राज्य में नहीं हुए। वर्ष 1979 में तत्कालीन ज्योति बसु सरकार की पुलिस व सीपीएम काडरों ने बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों के ऊपर जिस निर्ममता से गोलियां बरसाईं उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती।
नंदीग्राम और सिंगुर की राजनीतिक हिंसा और हत्याओं ने सीपीएम के पतन का रास्ता साफ किया था। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2009 में राज्य में 50 राजनीतिक हत्याएं हुई थीं और उसके बाद अगले दो वर्षों में 38-38 लोग मारे गए। यह वाममोर्चा सरकार के उतार और तेजी से उभरती तृणमूल कांग्रेस के सत्ता की ओर बढ़ने का दौर था. वर्ष 2007, 2010, 2011 और 2013 में राजनीतिक हत्याओं के मामले में बंगाल पूरे देश में पहले नंबर पर रहा। वर्ष 2011 में ममता बनर्जी की अगुवाई में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद भी राजनीतिक हिंसा का दौर जारी रहा। दरअसल, लेफ्ट के तमाम काडरों ने धीरे-धीरे तृणमूल का दामन लिया था यानी दल तो बदले लेकिन चेहरे नहीं अब धीरे-धीरे भाजपा के उभारने के बाद एक बार फिर नए सिरे से राजनीतिक हिंसा का दौर शुरू हुआ है। ममता बनर्जी के कार्यकाल में राजनीतिक हिंसा की तस्वीर बदलती नजर नहीं आई। ऐसे में लोगो की उम्मीद अब किसी तीसरे विकल्प पर हैं यह विकल्प 2021 के विधानसभा चुनावों में तय होगा।बंगाल में राजनीतिक झड़पों में बढ़ोतरी के पीछे मुख्य तौर पर तीन वजहें मानी जा रही हैं- बेरोज़गारी, विधि-शासन पर सत्ताधारी दल का वर्चस्व और भाजपा का उभार।
पश्चिम बंगाल में राजनीकि हिंसा का निष्कर्ष यही है कि राजनीतिक दलों ने वहां समाज का चरित्र ही हिंसा का बना दिया है। सामान्य आदमी भी यदि हाथों में बांस, लाठी, कटार, खंभे लेकर विरोधियों को मारने दौड़ रहा है तो इसका अर्थ और क्या हो सकता है? अगर समाज का चरित्र राजनीतिक हिंसा का बना दिया जाए तो उसे समाप्त कर पाना कठिन होता है। कुल मिलाकर पश्चिम बंगाल केवल राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है। यह चुनौती पहले भी रही है। इसमें आक्रामकता थोड़ी ज्यादा हुई है और पात्र बदल गए हैं।
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15 जुलाई 2020 पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के कृष्णानगर में भाजपा युवा मोर्चा के 38 वर्षीय कार्यकर्ता बापी घोष की हत्या कर दी गई। बापी घोष के सिर पर बांस और रॉड से हमला किया। इस हमले में बापी घोष बुरी तरह से घायल हो गए। उन्हें तुरंत कृष्णानगर जिला अस्पताल में ले जाया गया लेकिन उनकी बिगड़ती देख डॉक्टर ने कोलकाता स्थित एनआरएस अस्पताल रेफर कर दिया। जहां इलाज के दौरान बापी घोष की मौत हो गई। बापी घोष के पिता निमाई घोष ने कहा कि मेरा बेटा कुछ दिन पहले ही भाजपा में शामिल हुआ था इसीलिए तृणमूल कांग्रेस के लोगों ने उसे मार डाला।
13 जुलाई, 2020 सीपीएम छोड़ भाजपा में आए उत्तर दिनाजपुर की सुरक्षित सीट हेमताबाद के विधायक देबेंद्र नाथ रॉय की 13 जुलाई को हत्या कर दी गई। उनका शव एक दुकान के बाहर फंदे पर लटका मिला। स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें पहले मारा गया और फिर लटका दिया गया।प्रशासनिक स्तर पर इस मामले को आत्महत्या बताए जाने के खिलाफ देबेंद्र नाथ रॉय की पत्नी ने कोर्ट का दरवाजा ख्रटखटाया है। हत्या का आरोप तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर लग रहा है।
7 अप्रैल 2020 पश्चिम बंगाल के कुलताली इलाके के कनकासा गांव में शकुंतला हलदर और उनके पति चंद्र हलदर की हत्या कर दी।चंद्र हलदर का शव उनके घर के बाहर पेड़ से लटका मिला, जबकि शकुंतला का शव घर के भीतर था। हत्या करने वालों ने घर में घुसकर मृतक दंपति के बच्चों को भी धमकाया। मृतक दंपति का कसूर इतना था कि उन्होंने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर 5 अप्रैल को रात 9 बजे घर की लाइट बुझाकर दीया जलाया था। रिश्तेदारों का आरोप है इस बात से तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेता नाराज हो गए क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री का आग्रह नहीं मानने का फरमान जारी किया था। इसी का बदला लेने के लिए दंपति की हत्या कर दी गई।
7 मार्च 2020 पश्चिम बंगाल के गंगा सागर में भाजपा कार्यकर्ता देवाशीष मंडल की हत्या कर दी गई। देवाशीष मंडल भाजपा के बूथ अध्यक्ष थे और इलाके में पार्टी को मजबूत करने में लगे हुए थे। बताया जा रहा है कि स्थानीय तृणमूल कांग्रेस नेताओं को उनकी यह सक्रीयता अच्छी नहीं लगती थी और इसी रंजिश में देवाशीष मंडल की निर्ममता से हत्या कर दी।
6 फरवरी 2020 पश्चिम बंगाल में 24 परगना के सोनारपुर में भाजपा नेता नारायण विश्वास की निर्मम हत्या कर दी गई। बाइक सवार हमलावरों ने पहले नारायण विश्वास को गोली मारी और जब वो जख्मी होकर गिर गए तो चाकू मारकर उनकी हत्या कर दी गई। इस घटना से वहां अफरा-तफरी मच गई। गोली की आवाज सुनकर आसपास के लोगों ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया। जहां डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। नारायण विश्वास भारतीय जनता व्यापार संघ के सोनारपुर दक्षिण विधानसभा संख्या 4 के अध्यक्ष थे। हत्या का आरोप तृणमूल कांग्रेस पर लगा।